Friday, 30 March 2012

Sochta Hu.........



सोचता हूँ कि काश तुम होते , कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते , सोचता हूँ कि वो कैसे टूटा ,
क्यूँ ना जाना कि रिश्ता कांच का था , गीली मिट्टी की तरहा फिसल गया , दोष मिट्टी का था कि हाथ का था?  काश इतने सवाल ना होते , कुछ तो तकलीफज़दा कम होते , सोचता हूँ कि काश तुम होते , कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते , सोचता हूँ कि कैसे होगे तुम , जो मिलूंगा तो क्या कहोगे तुम , जो कहूँगा, कि याद करते हो? , सच कहोगे कि चुप रहोगे तुम? , काश फिर याद के कोहरे होते , काश फिर बातों के मौसम होते  सोचता हूँ कि काश तुम होते , कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते......................................

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