सोचता हूँ कि काश तुम होते , कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते , सोचता हूँ कि वो कैसे टूटा ,
क्यूँ ना जाना कि रिश्ता कांच का था , गीली मिट्टी की तरहा फिसल गया , दोष मिट्टी का था कि हाथ का था? काश इतने सवाल ना होते , कुछ तो तकलीफज़दा कम होते , सोचता हूँ कि काश तुम होते , कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते , सोचता हूँ कि कैसे होगे तुम , जो मिलूंगा तो क्या कहोगे तुम , जो कहूँगा, कि याद करते हो? , सच कहोगे कि चुप रहोगे तुम? , काश फिर याद के कोहरे होते , काश फिर बातों के मौसम होते सोचता हूँ कि काश तुम होते , कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते......................................
क्यूँ ना जाना कि रिश्ता कांच का था , गीली मिट्टी की तरहा फिसल गया , दोष मिट्टी का था कि हाथ का था? काश इतने सवाल ना होते , कुछ तो तकलीफज़दा कम होते , सोचता हूँ कि काश तुम होते , कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते , सोचता हूँ कि कैसे होगे तुम , जो मिलूंगा तो क्या कहोगे तुम , जो कहूँगा, कि याद करते हो? , सच कहोगे कि चुप रहोगे तुम? , काश फिर याद के कोहरे होते , काश फिर बातों के मौसम होते सोचता हूँ कि काश तुम होते , कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते......................................
No comments:
Post a Comment