Monday, 8 June 2015

nazam

हर एक खोने हर एक पाने में तेरी याद आती है
नमक आँखों में घुल जाने में तेरी याद आती है
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कोई कब तक महज़ सोचे कोई कब तक महज़ गाये
इलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाये
मेरा महताब उसकी रात के आग़ोश में पिघले
मैं उसकी नींद में जागूं वो मुझमे घुल के सो जाये
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्‍हें बतला रहा हूं मैं
कोई लब छू गया था तब कि अबतक गा रहा हूं मैं
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यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं 
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है

Written by Dr. Kumar Vishwas
Posted by :Ravi Jha

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